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जंगे बद्र कैसे हुई और कितने सहाबी शहीद हुए है? | Jung E Badar Kaise Hui - Battle Of Badar History| Jung e badar

जंगे बद्र कैसे हुई और कितने सहाबी शहीद हुए है? | Jung E Badar Kaise Hui - Battle Of Badar History| Jung e badar, LASHKAR E RAZA, Islamic battle
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जंगे बद्र कैसे हुई और कितने सहाबी शहीद हुए है? | Jung E Badar Kaise Hui - Battle Of Badar History| Jung e badar

17 रमज़ान जंगे बद्र कैसे हुई और कितने सहाबी शहीद हुए है?


जंगे बद्र कहां है मदीना मुनव्वरा से तक्रीबन अस्सी मील के फासले ● पर एक गांव का नाम है।,,, जहां ज़मानए जाहिलियत में सालाना मेला लगता था। यहां एक कुवां भी था। जिसके मालिक का नाम "बदर" था।


इसी के नाम पर इस जगह का नाम बदर" रख दिया गया। इसी मंकाम पर जंगे बद्र को वह अज़ीम मअर्रका हुआ जिस में कुफ्फारे कुरैश और मुसलमानों के दरमियान रख्त खूं रेंज लड़ाई हुई। और मुसलमानों को वह अज़ीमुश्शान फतह मुबीन नसीब हुई


जिसके बाद इस्लाम की इज़्ज़तों इकबाल का परचम इतना सर बुलन्द हो गया कि कुफ्फारे कुरैश की अज़मत व शौकत बिल्कुल ही खाक में मिल गई। अल्लाह तआला ने जंगे बद्र दिन का नाम "यौमुल फुरकान " रखा। 


और कुरआन की सूरए अन्फाल में तफ‌सील के साथ और दूसरी सूरतों में इजमालन बार बार इस मार्का का ज़िक्र फरमाया और इस जंग में मुसलामनों की फतह मुबीन के बारे_ में _एहसान जताते हुए खुदावंदे आलम ने कुरआन मजीद में इरशाद फरमाया कि


और यकीनन खुदावंद तआला ने तुम लोगों की मदद फमाई बद्र में जब कि तुम लोग कमज़ोर और बेसरो सामान थे तो तुम लोग_ _अल्लाह से डरते रहो। ताकि तुम लोग शुक्र गुज़ार हो जाओ।) 


जंगे बद्र का सबब :

जंगे बद्र का असली सबब तो जैसा कि हम तहरीर कर चुके हैं, "अमर बिनुल हज़रमी" के कत्ल से कुफ़्फ़ारे कुरैश में फैला हुआ जबरदस्त इश्तेआल था। जिससे हर काफिर_ की _ज़बान पर यही एक नारा था कि "खून का बदला खून"ले कर रहेंगे।


मगर बिल्कुल नागहानी ये सूरत पेश आ गई कि कुरैश का वह काफला जिसकी तलाश में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मकामे "ज़िल उशैरा" तक तशरीफ ले गए थे मगर वह काफला हाथ नहीं आया था। 


बिल्कुल अचानक मदीना में ख़बर मिली कि अब वही काफला मुल्के शाम से लौटकर_ _मक्का जाने वाला है। और ये_ भी पता चल गया कि इस काफले में अबू सुफ्यान बिन हरब व मख़ख़रमा बिन नौफल व अमर बिनुल आस ,वगैरा कुल तीस या चालीस आदमी हैं 


और_ कुफ्फारे कुरैश का मात्र तिजारत जो इस _काफ्‌ले में है वह बहुत ज़्यादा है। हुज़ूर  सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने_ _अपने असहाब से फरमाय कि कुफ़्फ़ारे कुरैश की टोलियां लूटमार की नियत से_ _मदीने अतराफ में बराबर गश्त लगाती रहती है। और "कुर्ज बिन जाकि फुहरी मदीने की_ __चरागाहों तक आकर गारत गिरी और डाका जन कर गया है। 


लिहाज़ा क्यों न हम भी कुफ़्फ़ारे कुरैश के इस काफले पर_ __हमला करके इसको लूट लें। ताकि कुफ़्फ़ारे कुरैश की शामी तिजारत बंद हो_ _जाए। और वह मजबूर होकर हमसे सुलह कर लें। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का यह इरशाद गिरामी सुनकर_ _अन्सार व मुहाजिरीन इसके लिए तय्यार हो गए। 


 क़िताब 📘 सीरतुल मुस्तफा

सफा  168



LASHKAR E RAZA 

About the Author

My Name Is Muhammad Saqib Raza Qadri Qureshi ( SAQIB QADRI ASJADI ) From PILIBHIT Nearest Bareilly Uttar Pradesh India 262001 | I am currently pursuing Bachelor of Arts

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