बयां हो किस तरह रुतबा मेरे शाहजी मियां तेरा
ज़माने भर में है चर्चा मेरे शाहजी मियां तेरा
मुखालिफ़ जलते हैं जलते रहें परवाह नहीं हमको
बजेगा हश्र तक डंका मेरे शाहजी मियां तेरा
उठाते फायदा हैं आज भी मंगते तेरे शाहजी
जहां में फ़ैज़ है बरसा मेरे शाहजी मियां तेरा
पहुंच कर उनके दर पे दिल नहीं करता है जाने को
हसीं है इस क़दर रौज़ा मेरे शाहजी मियां तेरा
करें हां आला हज़रत भी तेरी ताज़ीम ए आक़ा
मर्तबा है किस क़दर आला मेरे शाहजी मियां तेरा
Poet : Muhammad Saqib Raza Qureshi ( Pilibhit )
