आज की रात ज़ियाओं की है बारात की रात
फ़ज़्ल ए नौशाह ए दो आ'लम के बयानात की रात
शब ए मेअ'राज वोह आवहा के इशारात की रात
कौन समझाए वोह कैसी थी मुनाजात की रात
छाई रहती है ख़यालों में तुम्हारी जुल्फें
कोई मौसम हो यहां रहती है बरसात की रात
रिंद पीते हैं तेरी ज़ुल्फ के साए में सदा
कोई मौसम हो यहां रहती है बरसात की रात
रुख ए ताबां ए नबी ज़ुल्फ़ ए मुअम्बर पे फ़िदा
रोज़ ए ताबिंदा ये मस्ती भरी बरसात की रात
दिल का हर दाग़ चमकता है क़मर की सूरत
कितनी रौशन है रुख ए शाह के ख़यालात की रात
हर शब ए हिज्र लगी रहती है अश्कों की झड़ी
कोई मौसम हो यहां रहती है बरसात की रात
जिस की तन्हाई में वोह शाम ए शबिस्तानी हो
रश्क ए सद बज़्म है उस रिंद ख़राबात की बात
बुलबुल ए बाग़ ए मदिनाह को सुना दे अख़्तर
आज की शब है फ़रिश्तों से मुबाहात की रात
Poet: HUZOOR TAJUSHSHARIA
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