दर ए जानां पे फ़िदाई को अजल आई हो
ज़िंदगी आके जनाज़े पे तमाशाई हो
तेरी सूरत जो तसव्वुर में उतर आई हो
फिर तो ख़लवत में अजब अंजुमन आराई हो
नेक सा'अत से अजल ऐश ए अबद लाई हो
दर ए जानां पे कोई महव ए जबीन लाई हो
संग ए दर पर तेरे यूं नसेहा फ़रसाई हो
ख़ुद को भूला हुआ जाना तेरा शैदाई हो
ख़ुद बख़ुद खुल्द वहां खींच के चली आई हो
दश्त ए तैबाह में जहां बादेयाह ए पयमाई हो
मौसम ए मय हो वो गेसू की घटा छाई हो
चश्म ए मैगुं से पिएं जलसा ए सहबाई हो
चांदनी रात में फिर मय का वो एक दौर चले
बज़्म ए अफ़लाक को भी हसरत ए मय आई हो
उनके दीवाने खुली बात कहां करते हैं
बात समझे वही जो साहिब ए दानाई हो
मेहर ए ख़ावर पे जमाए नहीं जमती नज़रें
वोह अगर जलवा करें कौन तमाशाई हो
दश्त ए तैबाह में चलूं चल के गिरूं गिर के चलूं
नातवानी मेरी सद रश्क ए तवानाई हो
गुल हो जब अख़्तर ए ख़स्ता का चराग़ ए हस्ती
इसकी आंखों में तेरा जलवा ए जैबाई हो.
Writer: HUZOOR TAJUSHSHARIA
