लब ए जां बख़्श का ऐ जां मुझे सदक़ा दे दो
मुश्दाह ए ऐश ए अबद जान ए मसीहा दे दो
ग़म ए हस्ती का मदावा मेरे मौला दे दो
बदाह ए ख़ास का एक जाम छलकता दे दो
ग़र्क़ होती हुई नांव को सहारा दे दो
मौज थम जाए ख़ुदारा ये इशारा दे दो
हम गुनाहगार सही हज़रत ए रिज़वां लेकिन
उन के बंदे हैं जिनां हक़ है हमारा दे दो
तपिश ए महर ए क़यामत को सहें हम कैसे
अपने दामान ए करम का हमें साया दे दो
भूल जाए जिसे पी कर ग़म ए दौरां अख़्तर
साकी ए कौसर ओ तस्नीम वोह सहबा दे दो.
WRITER: HUZOOR TAJUSHSHARIA
