मेरी ख़लवत में मज़े अंजुमन आराई के
सदक़े जाऊं में अनीस ए शबे तन्हाई के
उन के सदक़े में मिला मोल अनोखा मुझ को
हो गए दोनो जहां आप के शैदाई के
सर है सज्दे में ख़याल ए रुख़ ए जानां दिल में
हम को आते हैं मज़े नासेयाह फ़रसाई के
सज्दाह बे उल्फ़त ए सरकार अ'बस ऐ नज्दी
महर ए ला'नत हैं ये सब दाग़ जबीं साई के
दश्त ए तैबाह में गुमा दे मुझे ऐ जोश ए जुनूं
खूब लेने दे मज़े बादिआह पैमायी के
वो रग ए जान ए दो आ'लम हैं बड़े भाई नहीं
हैं ये सब फंदे बुरे तेरे बड़े भाई के
मैं तो हूं बुलबुल ए बुस्तान ए मदीनाह अख़्तर
हौसलें मुझ को नहीं क़ाफ़ियाह आराई के.
Written by: huzoor TajushSharia
