शहंशाह ए दो आ'लम का करम है
मेरे दिल को मयस्सर उन का ग़म है
यहीं रहते हैं वोह जान ए बहारां
ये दुनिया दिल की रश्क ए सद इरम है
भला दावे हैं उन से हम सारी के
सर ए अ'र्श ए बरीं जिन का क़दम है
ये दरबार ए नबी है जिस के आगे
ना जाने अर्श ए आ'ज़म कब से ख़म है
तरस खाओ मेरी तिशनह लबी पर
बढ़ेगी और बेताबी सितम है
यहां क़ाबू में रख दिल को अख़्तर
ये दरबार ए शाह ए उमम है
Written by huzoor TajushSharia