तारों की अंजुमन में ये बात हो रही है
मरकज़ तजल्लियों का ख़ाक़ ए दर ए नबी है
ज़रें यह कह रहें हैं इस नूर के क़दम से
ये आब ओ ताब लेकर हम ने जहां को दी है
यकता हैं जिस तरह वोह है उनका ग़म भी यकता
ख़ुश हूं की मुझ को दौलत अनमोल मिल गई है
फिर क्यूं कहूं परेशान हो कर बा क़ौल शखसे
यकता के ग़म में अब भी बे कैफ़ ज़िंदगी है.
Written by huzoor TajushSharia
