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वोही तबस्सुम वोही तरन्नुम
वही नज़ाकत वही लताफ़त
वोही दुज़ दीदाह सी निगाहें के जिस से
शौखी टपक रही है
गुलों की खुशबू महक रही है दिलों की
कलियां चटक रही है
निगाहें उठ उठ के झुक रही हैं के एक
बिजली चमक रही है
ये मुझ से कहती है दिल की धड़कन
के दस्त ए साक़ी से जाम ले ले
वोह दौर साग़र का चल रहा है शराब
एरंगीं छलक रही है
ये मैंने माना हसीन ओ दिलकश समां
ये मस्ती भरा है लेकिन
ख़ुशी में हाइल है फ़िक्र ए फ़रदा मुझे
ये मस्ती खटक रही है
ना जाने कितने फ़रेब खाए राह ए
उल्फ़त में हम ने अख़्तर
पर अपनी मत को भी क्या करें फ़रेब
खा कर बहक रही है
Written by huzoor TajushSharia
