वोह छाई घटा बादा बार ए मदीनाह
पिए झूम कर जां निसार ए मदीनाह
वोह चमका वोह चमका मिनार ए मदीनाह
क़रीब आ रहा है दयार ए मदीनाह
नहां लें गुनाह गार अब्र ए करम में
उठा देखिए वोह गुबार ए मदीनाह
ख़ुदा याद फ़रमाए सौगंद ए तैबाह
ज़हे अज़मतो ओ इफ़्तेख़ार ए मदीनाह
अगर देखे रिज़वां चमन ज़ार ए तैबाह
कहे देख कर यूं वोह ख़ार ए मदीनाह
मदीने के कांटे भी सद रश्क ए गुल है
अजब रंग पर है बहार ए मदीनाह
नहीं जचती जन्नत भी नज़रों में उन की
जिन्हें भा गया ख़ार ए ज़ार ए मदीनाह
मेरी जान से भी वोह नज़दीक तर हैं
वो मौलाई हर बे क़रार ए मदीनाह
करूं क्या फ़िक्र मैं ग़म ए ज़िंदगी की
मैं हूं बंदाह ए ग़म गुसार ए मदीनाह
चला दौर ए साग़र मय नाब छलकी
रहे तिशनाह क्यों बादा ख़्वार ए मदीनाह
चला कौन ख़ुशबू लुटाता के अब तक
है महकी हुई रह गुज़ार ए मदीनाह
सहर दिन है और शाम ए तैबाह सहर है
अनोखे हैं लैल ओ नहार ए मदीनाह
बुला अख़्तर ए ख़स्ता हाल को भी दर पर
मैं सदक़े तेरे शहर ए यार ए मदीनाह.
Written By: Huzoor TajushSharia Mufti Akhtar Raza Khan Qadri Barelvi
