एक सच्चा वाकिआ जिसमें शैख अबू साद की बेटी को जिन्नात उठा ले जाते हैं और गौसे आज़म रहमतुल्लाहि अलैहि की करामात से वह वापिस मिल जाती है। जानिए किस तरह जिन्नात के बादशाह ने भी उनका अदब!Table of Contents
गौसे आज़म की करामात: जब जिन्नात का बादशाह भी झुक गया!
बेटी की गुमशुदगी और गौसे आज़म की रहनुमाई!
शैख अबू साद अब्दुल्लाह बिन अहमद बगदादी अज़्ज़ी रहमतुल्लाहि अलैहि से नक्ल है कि वग़दाद में मेरी बेटी जिसका नाम फातिमा था हमारे घर की छत पर चढ़ी जिसको कोई उठाकर ले गया। उसकी उम्र 16 साल थी और गैर शादीशुदा थी।
तब मैं हज़रत शैख मुहीउद्दीन सय्यिद अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि अलैहि की ख़िदमते अक़्दस में। हाज़िर हुआ और इस बात का ज़िक्र आपसे किया।
जंगल की रात और जिन्नात का हुजूम!
आपने फरमाया, आज की रात तुम करख के जंगल की तरफ जाओ। पांचवें टीले के पास जाकर बैठो, ज़मीन पर अपने चारों तरफ एक दायरा खींच लो और लाइन खींचने के वक्त यह कहना "बिस्मिल्ला अला नियती सय्यिद अब्दुल कादिर रहमतुल्लाहि अलैहि'। फिर जब थोड़ी देर गुज़र जाए तो तुम्हारे पास जिन्नों का गिरोह आएगा जिनकी सूरतें अलग अलग होंगी। तुम उनसे मत डरना और जब सुबह हो जाएगी तो उस वक़्त उनका बादशाह एक लश्कर के साथ आयेगा, तुम से तुम्हारा मतलब पूछेगा, तुम कहना कि मुझ को सैय्यद अब्दुल कादिर रहमतुल्लाहि अलैहि ने तुम्हारी तरफ भेजा है और उससे अपनी लड़की का हाल बयान करना। तब मैं गया और जो कुछ आपने हुक्म दिया था उसी तरह अमल किया। काफी डरावनी शक्ल वाली सूरतें गुज़रीं लेकिन किसी को मजाल न थी कि उस लाइन के करीब आये जिसमें कि मैं था और रात भर गिरोह आते रहे,
जिन्नात का कबूलनामा और बेटी की वापसी!
यहां तक कि उनका बादशाह घोड़े पर सवार होकर आया और दायरे के करीब आकर पूछा, ऐ शख़्स ! तुम्हारी क्या हाजत है? मैंने कहा कि मुझ को सय्यिदी अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि अलैहि ने भेजा है। तब वह घोड़े से उतरा और ज़मीन को चूमा और दायरे से बाहर बैठ गया और मेरी खेरियत मालूम की। मैंने अपनी बेटी के गुम होने का वाकिआ बयान किया। उसने अपने साथियों से कहा कि यह काम किसने किया है। वह थोड़ी देर के बाद एक जिन को पकड़ लाये जिसके साथ वह लड़की थी और बताया कि यह चीन का जिन है। उससे पूछा गया कि तुझको किस चीज़ ने राज़ी किया कि कुतुब की रकाब के नीचे चोरी करे। उसने कहा कि मैंने इसको देखा और इसकी मुहब्बत मेरे दिल में आई।
जिन्नात की गर्दन उड़ा दी?
बादशाह ने हुक्म दिया कि इसकी गर्दन उड़ा दी जाए और मुझको मेरी बेटी हवाले कर दी। मैंने उससे कहा कि आज रात जैसा मामला कभी नहीं देखा और तुम अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि अलैहि की इस कद्र ताबेदारी करते हो। उसने कहा, हाँ! बेशक वह अपने घर में बैठे हम जिनों को देखते हैं, हालांकि दूर के रहने वाले होते हैं। वह देखते ही अपने मकानों की तरफ आपकी हैबत से भाग जाते हैं और अल्लाह तआला जब किसी को कुतुब मुकर्रर फरमाता है तो उसको जिन्न व इंसान पर गलबा देता है।
(बहजतुल असरार, पेज 210)📚
तशरीहः- सय्यिदिना गौसे आज़म रहमतुल्लाहि अलैहि के मर्तबों में।
से एक मर्तबा गौसुस्सक्लैन का है। यानी जिन्न और इंसान की फरयाद सुनने वाले। आपका फरमान है कि इंसानों के भी पीर होते हैं और जिन्नात के भी और फरिश्तों के भी और मैं पीरों का पीर हूँ। तो मालूम हुआ कि जिन्नात भी आपकी दस्तगीरी के मोहताज हैं और जिन्नात भी आप सरकार के मुरीद होते हैं। इसलिए जिन्नों का सरदार साहिबे इल्म व इरफान था, वह आपके मकाम और मर्तबे को जानता था
जिन्नात और गौस ए आज़म का अदब!
इसलिए आपका नाम मुबारक सुनते ही सवारी से उतर आया और आपके इन्तिहाई अदब के लिए उसने ज़मीन को चूमा, हालांकि वह। जिन्नात का बादशाह था। फिर दूसरे जिन्न आपसे क्यों न डरें और आपका अदब क्यों न करें। आपकी गौसियत की ताकत से हज़रत इजराईल अलैहिस्सलाम भी कब्ज़े में की गई रूहों को काबू में न रख सके और रूहें वापस अपने जिस्मों में चली गई और मुर्दे ज़िन्दा हो गये तो फिर जिन्नात की क्या मजाल ।
मुहद्दिस देहलवी क्या फरमाते हैं गौस ए आज़म के बारे में?
"अखबारुल अख्यार" में हज़रत शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि अलैहि ने लिखा है कि हज़रत अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाहि अलैहि जो सय्यिदिना गौसे आज़म रहमतुल्लाहि अलैहि की.. औलाद पाक में से वली कामिल गुज़रे हैं और कादरी सिलसिले के बुजुर्ग हैं उनके दरबार कछोछा शरीफ ज़िला फैज़आबाद (इंडिया) में
जिन्नात के वास्ते मौत ऐसी जगह?
जिस शख़्स पर भी बड़े से बड़ा जिन्न, आसेब चढ़ा हुआ हो उसको वहां लाते ही उस शख्स को छोड़कर भाग जाता है। तो क्या मकाम होगा। सय्यिदिना गौसे आज़म रहमतुल्लाहि अलैहि का। हज़रत अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाहि अलैहि के हालात व करामात सय्यिद अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि अलैहि ने "अखबारुल अख्यार" में बयान किए हैं।
📚 Book Refrence:
•अखबारुल अख्यार"
•(बहजतुल असरार, पेज 210)