इल्मे दीन किसे कहते हैं?
क्या सिर्फ नमाज़ रोज़े का इल्म ही इल्मे दीन है ?
इल्म का मतलब है: जानना, मा'लूम होना। नमाज़ रोज़े का इल्म भी बेशक इल्मे दीन है, लेकिन इस के इलावा भी बहुत सारी चीजें इल्मे दीन में दाखिल हैं। इल्मे दीन में बहुत वुस्अत है और येह इतना ज़ियादा है कि सारा इल्म तो कोई हासिल कर ही नहीं सकता। सब से बड़ी इल्म वाली जात अल्लाह पाक की है, जिस को किसी ने इल्म नहीं दिया, वोह अपने आप आलिम है।
हज़रत ए आदम का इल्म
फिर उस के दिये से उस की मख्लूक में हज़रते आदम عَلَيْهِ السَّلام से ले कर क़ियामत तक के लिये सब से बड़े आलिमे दीन जनाबे रहूमतुल्लिल आलमीन صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم हैं। हर नबी आलिमे दीन होता है और अपनी उम्मत में सब से बड़ा आलिम वोही होता है।
मुस्तफा जाने रहमतﷺ
इस वक़्त के नबी मेरे आका صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَالِهِ وَسَلَّم सब से बड़े आलिम हैं। यूं इल्मे दीन की वुस्अत और गहराई बहुत ज़ियादा है, इस लिये जो जितना ज़ियादा इल्मे दीन हासिल कर सके उस को करना चाहिये!
ता'लीम हासिल करना हर मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है?
येह राहनुमाई फरमाइये कि कितना इल्म हासिल करना ज़रूरी है ?
طَلَبُ الْعِلْمِ فَرِيضَةً عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ या'नी हर मुसल्म पर इल्म तलब करना फ़र्ज़ है।"
- •लफ़्ज़े "ता'लीम" पर आदमी थोड़ा आगे पीछे हो जाता है और ता'लीम से मुराद उमूमन स्कूल वगैरा की ता'लीम ली जाती है हालां कि इस हदीस से स्कूल या कोलेज की ता'लीम मुराद नहीं है।
- •बा'ज़ लोग इस तरह की अहादीसे करीमा के ज़रीए अपने स्कूल, कोलेज और दुन्यावी तालीमी इदारे चला रहे होते हैं, तौबा ! اَسْتَغْفِرُ الله । अहादीसे मुबारका से अपनी अट्कल के ज़ीए इस्तिद्भाल करना हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है,
- •सिर्फ मुहद्दिसीन उलमाए किराम हमें इस का मा'ना बता सकते हैं। बहर हाल ! आ'ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान رَحْبَةُ اللَّهِ عَلَيْهِ ने इस हदीसे पाक की "फ़्तावा रविय्या" में तफ्सीलन शर्ह फ़रमाई है जिस का खुलासा कुछ यूं है कि "हर मुसल्मान पर फ़र्ज़ उलूम जानना ज़रूरी हैं जैसे कोई बालिग हुवा तो उस पर नमाज़ फ़र्ज़ हो गई,
ज़रूरी मसाइल
अब उस पर नमाज़ के ज़रूरी मसाइल जानना भी फ़र्ज़ हो गया, इसी तरह रमज़ान आया तो जिस पर रोज़ा फ़र्ज़ है उस पर रमज़ान के ज़रूरी मसाइल जानना भी फ़र्ज़ हो गया, यूं ही ताजिर या'नी Businessman पर तिजारत के, गाहक पर खरीदारी के, नोकर पर नोकरी के, जिस पर ज़कात फ़र्ज़ है उस पर ज़कात के, इसी तरह जिस को शादी करनी है उस पर निकाह व तलाक के ज़रूरी मसाइल जानना फ़र्ज़ हैं
इल्मे दीन कितना आना चाहिये ?
सब से पहले तो अपने अकाइद से वाकिफ होना ज़रूरी है, इस के इलावा गुनाहों की मा'लूमात होना फ़र्ज़ है, बातिनी बीमारियां मसलन तकब्बुर, हसद, रिया वगैरा जिन को "मोहलिकात" कहा जाता है इन की मा' लूमात होना भी फ़र्ज़ है। इस के लिये "बातिनी बीमारियों की मा'लूमात" और "नजात दिलाने वाले आ'माल की मा'लूमात" येह दोनों किताबें पढ़ना बहुत ज़रूरी है।
वक़्त होने के बा वुजूद इल्मे दीन हासिल न करने वाले के बारे में आप क्या फ़रमाते हैं ?
वक़्त होने के बा वुजूद इल्मे दीन हासिल न करना बहुत बड़ी महरूमी की बात है, क़ियामत के दिन ऐसे शख्स को सब से ज़ियादा हसरत होगी, चुनान्चे सरकारे मदीना صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَإِلِهِ وَسَلَّم ने इर्शाद फ़रमाया: सब से ज़ियादा हसरत कियामत के दिन उसे होगी जिसे दुन्या में इल्म हासिल करने का मौक़ मिला मगर उस ने हासिल न किया
और उस शख्स को होगी जिस ने इल्म हासिल किया और दूसरों ने तो इस से सुन कर न उठाया लेकिन इस ने न उठाया (या'नी उस इल्म पर अमल न किया)
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