पी के जो मस्त हो गया बादह ए इश्क़ ए मुस्तफ़ा
उस की ख़ुदाई हो गई और वो ख़ुदा का हो गया
कह दिया क़ासिम उन अना दोनों जहां के शाह ने
या'नी दर ए हुजूर पे बंटती है नेअ'मत ए ख़ुदा
अ'रसा ए हश्र में खुली उनकी वोह जुल्फ ए अंबरी
मिनाह वो झूम कर गिरा छाई वोह देखिए घटा
गर्दिश ए चश्म ए नाज़ में सदक़े तेरे ये कह तो दे
ले चलो इस को खुल्द में ये तो हमारा हो गया
है ये सफ़ीना ए निजात इसमें थी मेरी क्या बिसात
अख़्तर यूं ही अ'ता करे सय्यद वसी पढ़े सलाम
Poet : huzoor TajushSharia